माता की माता मातामही कही गयी है। वह माता के समान ही पूजित होती है। प्रमातामह की पत्नी को प्रमातामही समझना चाहिये। प्रमातामह के पिता की स्त्री वृद्धप्रमातामही जानने योग्य है। पिता के भाई को पितृव्य (ताऊ, चाचा) और माता के भाई को मातुल (मामा) कहते हैं। पिता की बहिन पितृष्वसा (फुआ) कही गयी है और माता की बहिन मासुरी (मातृष्वसा या मौसी)। सूनु, तनय, पुत्र, दायाद और आत्मज– ये बेटे के अर्थ में परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं। अपने से उत्पन्न हुए पुरुष (पुत्र) के अर्थ में धनभाक और वीर्यज शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। उत्पन्न की गयी पुत्री के अर्थ में दुहिता, कन्या और आत्मजा शब्द प्रचलित हैं। पुत्र की पत्नी को वधू (बहू) जानना चाहिये और पुत्री के पति को जामाता (दामाद)।
प्रियतम पति के अर्थ में पति, प्रिय, भर्ता और स्वामी आदि शब्द प्रयुक्त होते हैं। पति के भाई को देवर कहा गया है और पति की बहिन को ननान्दा (ननद), पति के पिता को श्वसुर और पति की माता को श्वश्रु (सास) कहते हैं। भार्या, जाया, प्रिया, कान्ता और स्त्री– ये पत्नी के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। पत्नी के भाई को श्यालक (साला) और पत्नी की बहिन को श्यालिका (साली) कहते हैं। पत्नी की माता को श्वश्रू (सास) तथा पत्नी के पिता को श्वसुर कहा गया है। सगे भाई को सोदर और सगी बहिन को सोदरा या सहोदरा कहते हैं। बहिन के बेटे को भागिनेय (भगिना या भानजा) कहते हैं और भाई के बेटे को भ्रातृज (भतीजा)।
बहनोई के अर्थ में आबुत्त (भगिनीकान्त और भगिनीपति) आदि शब्दों का प्रयोग होता है। साली का पति (साढू) भी अपना भाई ही है; क्योंकि दोनों के ससुर एक हैं। मुने! श्वसुर को भी पिता जानना चाहिये। वह जन्मदाता पिता के ही तुल्य है। अन्नदाता, भय से रक्षा करने वाला, पत्नी का पिता, विद्यादाता और जन्मदाता– ये पाँच मनुष्यों के पिता हैं। अन्नदाता की पत्नी, बहिन, गुरु-पत्नी, माता, सौतेली माँ, बेटी, बहू, नानी, दादी, सास, माता की बहिन, पिता की बहिन, चाची और मामी– ये चौदह माताएँ हैं। पुत्र के पुत्र के अर्थ में पौत्र शब्द का प्रयोग होता है तथा उसके भी पुत्र के अर्थ में प्रपौत्र शब्द का। प्रपौत्र के भी जो पुत्र आदि हैं, वे वंशज तथा कुलज कहे गये हैं।