ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड : अध्याय 1
शौनक जी ने पूछा – सूत जी! आपने कहाँ के लिये प्रस्थान किया है और कहाँ से आप आ रहे हैं? आपका कल्याण हो। आज आपके दर्शन से हमारा दिन कैसा पुण्यमय हो गया। हम सभी लोग कलियुग में श्रेष्ठ ज्ञान से वंचित होने के कारण भयभीत हैं। संसार-सागर में डूबे हुए हैं और इस कष्ट से मुक्त होना चाहते हैं। हमारा उद्धार करने के लिये ही आप यहाँ पधारे हैं। आप बड़े भाग्यशाली साधु पुरुष हैं। पुराणों के ज्ञाता हैं। सम्पूर्ण पुराणों में निष्णात हैं और अत्यन्त कृपानिधान हैं। महाभाग! जिसके श्रवण और पठन से भगवान श्रीकृष्ण में अविचल भक्ति प्राप्त हो तथा जो तत्त्वज्ञान को बढ़ाने वाला हो, उस पुराण की कथा कहिये। सूतनन्दन! जो मोक्ष से भी बढ़कर है, कर्म का मूलोच्छेद करने वाली तथा संसार रूपी कारागार में बँधे हुए जीवों की बेड़ी काटने वाली है, वह कृष्ण-भक्ति ही जगत-रूपी दावानल से दग्ध हुए जीवों पर अमृत-रस की वर्षा करने वाली है। वही जीवधारियों के हृदय में नित्य-निरन्तर परम सुख एवं परमानन्द प्रदान करती है।[1] आप वह पुराण सुनाइये, जिसमें पहले सबके बीज[2] का प्रतिपादन तथा परब्रह्म के स्वरूप का निरूपण हो। सृष्टि के लिये उन्मुख हुए उस परमात्मा की सृष्टि का भी उत्कृष्ट वर्णन हो। मैं यह जानता हूँ कि परमात्मा का स्वरूप साकार है या निराकार? ब्रह्म का स्वरूप कैसा है? उसका ध्यान अथवा चिन्तन कैसे करना चाहिये? वैष्णव महात्मा किसका ध्यान करते हैं? तथा शान्तचित्त योगीजन किसका चिन्तन किया करते हैं? वेद में किन के गूढ़ एवं प्रधान मत का निरूपण किया गया है? वत्स! जिस पुराण में प्रकृति के स्वरूप का निरूपण हुआ हो, गुणों का लक्षण वर्णित हो तथा ‘महत्’ आदि तत्त्वों का निर्णय किया गया हो; जिसमें गोलोक, वैकुण्ठ, शिवलोक तथा अन्यान्य स्वर्गादि लोकों का वर्णन हो तथा अंशों और कलाओं का निरूपण हो, उस पुराण को श्रवण कराइये। सूतनन्दन! प्राकृत पदार्थ क्या है? प्रकृति क्या है तथा प्रकृति से परे जो आत्मा या परमात्मा है, उसका स्वरूप क्या है? जिन देवताओं और देवांगनाओं का भूतल पर गूढ़ रूप से जन्म या अवतरण हुआ है, उनका भी परिचय दीजिये। समुद्रों, पर्वतों और सरिताओं के प्रादुर्भाव की भी कथा कहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीकृष्णे निश्च्ला भक्तिर्यतो भवति शाश्वती। तत् कथ्यतां महाभाग पुराणं ज्ञानवर्द्धनम्॥
गरीयसी या मोक्षाच्च कर्ममूलनिकृन्तनी। संसारसंनिबद्धानां निगडच्छेदकर्तरी॥
भवदावाग्रिदग्धानां पीयूषवृष्टिवर्षिणी। सुखदाऽऽनन्ददा सौते शश्वच्चेतसि जीविनाम्॥-(ब्रह्मखण्ड 1।12-14) - ↑ कारण तत्त्व
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