ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 29-31
प्यासी गौ के जल पीते समय जो उसे दूर हटा देता है, वह पुरुष गोमुख नामक नरककुण्ड में पड़ता है। वहाँ सब ओर कीड़े और खौलता हुआ जल भरा रहता है। वह उसी में जलता हुआ वास करता है। इसके बाद दीर्घरोगी एवं दरिद्र मानव होता है। जो गौ, ब्राह्मण, स्त्री, भिक्षुक तथा गर्भ की प्रत्यक्ष अथवा आतिदेशि की हत्या करता है एवं अगम्या स्त्री के साथ गमन करता है, वह महान नीच व्यक्ति कुम्भीपाक नरक में निवास करता है। मेरे दूत निरन्तर मारते हुए उसे चूर्ण-चूर्ण कर देते हैं। प्रज्वलित अग्नि, कण्टक और खौलते हुए तेल में एवं गरम लोहे तथा आग से संतप्त ताँबे पर वह क्षण-क्षण में गिरता रहता है। फिर गीध, सूअर तथा कौवा और सर्प होता है। तदनन्तर वह विष्ठा का कीड़ा होता है। फिर बैल होने के पश्चात् कोढ़ी मनुष्य होता है। दरिद्रता उसका साथ कभी नहीं छोड़ती। साध्वि! जो भगवान श्रीकृष्ण और उनकी प्रतिमा में, अन्य देवताओं तथा उनके विग्रहों में, शिव तथा शिवलिंग में, सूर्य तथा सूर्यकान्तमणि में, गणेश और उनकी प्रतिमा में-सर्वत्र भेदबुद्धि करता है, उसे आतिदेशि की ब्रह्महत्या लगती है। अर्थात शास्त्र की आज्ञा के अनुसार उसे ब्रह्महत्या लगती है। जो अपने गुरु, इष्टदेव और जन्मदात्री माता में भेदबुद्धि करता है, उसे ब्रह्महत्या लगती है। जो विष्णु भक्तों तथा अन्य देवभक्तों में, ब्राह्मणों एवं ब्राह्मणेतरों में तुलना करता है, उसे ब्रह्महत्या लगती है। परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण सर्वेश्वरेश्वर हैं। ये सम्पूर्ण कारणों के कारण हैं। इन सर्वान्तर्यामी आदिपुरुष की सभी देवता उपासना करते हैं। ये माया से अनेक रूप धारण करते हैं। वस्तुतः ये एक निर्गुण ब्रह्म हैं। जो इनकी दूसरे किसी से समता करता है, वह आतिदेशि की ब्रह्महत्या का अधिकारी माना जाता है। वेद में कहे हुए देवताओं और पितरों के परम्परागत पूजन का जो निषेध करता है, वह ब्रह्महत्या को प्राप्त करता है। जो भगवान हृषीकेश तथा उनके मन्त्रोपासकों की निन्दा करता है; जो पवित्रों में भी परम पवित्र हैं, जिनका विग्रह आनन्दमय ज्ञानस्वरूप है तथा जो वैष्णवजनों के परम आराध्य एवं देवताओं के सेव्य हैं, उन सनातन भगवान श्रीहरि की जो पूजा नहीं करते, बल्कि उलटे निन्दा करते हैं, उनको ब्रह्महत्या लगती है। जो सर्वदेवीस्वरूपा, सर्वाद्या, सर्ववन्दिता, सर्वकारणरूपा, विष्णुभक्तिप्रदायिनी, सती, विष्णुमाया, सर्वशक्तिस्वरूपा तथा सर्वमाता प्रकृति (दुर्गा) हैं, उनकी जो निन्दा करते हैं, उन्हें ब्रह्महत्या प्राप्त होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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