ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 23
[स्नानीय-मन्त्र] देवि! जो शरीर के सौन्दर्य को बढ़ाने में कारण है, वह सुगन्धित आँवले का तैल और स्नान के लिये जल मैंने भक्तिभाव से सेवा में निवेदित किया है। आप यह सब स्वीकार करें। [अनुलेपन-मन्त्र] देवेश्वरि! यह मलय पर्वत से उत्पन्न, सुगन्धयुक्त सुखद चन्दन, जो देह की शोभा को बढ़ाने वाला है, मैंने अनुलेपन के रूप में आपको अर्पित किया है। [धूप-समर्पण-मन्त्र] देवि! जो सुगन्धित द्रव्यों से बना हुआ, पवित्र, प्रीतिदायक तथा दिव्य सुगन्ध प्रकट करने वाला है, ऐसा यह धूप मैंने भक्तिभाव से आपको अर्पित किया है। आप इसे ग्रहण करें। [दीप-समर्पण-मन्त्र] देवेश्वरि! जो जगत के लिये दर्शनीय, दृष्टि का सहायक तथा दीप्ति[1] का कारण है, जिसे अन्धकार के विनाश का बीज कहा गया है, वह दिव्य दीप मेरे द्वारा आपकी सेवा में निवेदन किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रकाश
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