ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 23
भक्तों पर कृपा करने के लिये ही ये साकार रूप से प्रकट हुई हैं। जगद्धाता प्रभु की इन प्राणप्रिया को ‘सुखदा’, ‘मुक्तिदा’, ‘शान्ता’, ‘सर्वसम्पत्स्वरूपा’ तथा ‘सर्वसम्पत्प्रदात्री’ कहते हैं। ये वेदों की अधिष्ठात्री देवी हैं। वेद-शास्त्र इनके स्वरूप हैं। मैं ऐसी वेदबीज स्वरूपा वेदमाता आप भगवती सावित्री की उपासना करता हूँ।’ इस प्रकार ध्यान करके अपने मस्तक पर पुष्प रखे। फिर श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक कलश के ऊपर भगवती सावित्री का आवाहन करे। वेदोक्त मन्त्रों का उच्चारण करते हुए सोलह प्रकार के उपचारों से व्रती पुरुष भगवती की पूजा करे। विधि पूर्वक पूजा और स्तुति सम्पन्न हो जाने पर देवेश्वरी सावित्री को प्रणाम करे। आसन, पाद्य, अर्घ्य, स्नान, अनुलेपन, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, शीतल जल, वस्त्र, भूषण, माला, चन्दन, आचमन और मनोहर शैय्या- ये देने योग्य षोडश उपचार हैं। [आसन-समर्पण-मन्त्र] देवि! यह आसन उत्तम काष्ठ के सारतत्त्व से बना हुआ है। साथ ही सुवर्ण आदि का बना हुआ आसन भी प्रस्तुत है। देवताओं के बैठने योग्य यह पुण्यप्रद आसन मैंने सदा के लिये आपकी सेवा में समर्पित कर दिया है। [पाद्य-मन्त्र] देवेश्वरि! यह तीर्थ का पवित्र जल आपके लिये पाद्य के रूप में प्रस्तुत है, जो अत्यन्त प्रीतिदायक तथा पुण्यप्रद है। पूजा का अंगभूत यह शुद्ध पाद्य मैंने भक्तिभाव से आपके चरणों में अर्पित किया है। [अर्घ्य-मन्त्र] देवि! यह शंख के जल से युक्त तथा दूर्वा, पुष्प और अक्षत से सम्पन्न परम पवित्र पुण्यदायक अर्ध्य मेरे द्वारा आपकी सेवा में निवेदन किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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