ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 11-12
ब्रह्मन! केवल वैकुण्ठ को छोड़कर और सब-का-सब जलमग्न है। तुम जाकर पुनः ब्रह्मलोकादि की सृष्टि करो। अपने ब्रह्माण्ड की भी रचना करना आवश्यक है। इसके पश्चात् गंगा वहाँ जायेगी। इसी प्रकार मैं अन्य ब्रह्माण्डों में भी इस सृष्टि के अवसर पर ब्रह्मादि लोकों की रचना का प्रयत्न करता हूँ। अब तुम देवताओं के साथ यहाँ से शीघ्र पधारो। बहुत समय व्यतीत हो गया; तुम लोगों में कई ब्रह्मा समाप्त हो गये और कितने अभी होंगे भी। मुने! इस प्रकार कहकर परमाराध्या राधा के प्राणपति भगवान श्रीकृष्ण अन्तःपुर में चले गये। ब्रह्मा प्रभृति देवता वहाँ से चलकर यत्नपूर्वक पुनः सृष्टि करने में तत्पर हो गये। फिर तो गोलोक, वैकुण्ठ, शिवलोक और ब्रह्मलोक तथा अन्यत्र भी जिस-जिस स्थान में गंगा को रहने के लिये परब्रह्मा परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण ने आज्ञा दी थी, उस-उस स्थान के लिए उसने प्रस्थान कर दिया। भगवान श्रीहरि के चरण कमल से गंगा प्रकट हुई, इसलिये उसे लोग ‘विष्णुपदी’ कहने लगे। ब्रह्मन! इस प्रकार गंगा के इस उत्तम उपाख्यान का वर्णन कर चुका। इस सारगर्भित प्रसंग से सुख और मोक्ष सुलभ हो जाते हैं। अब पुनः तुम्हें क्या सुनने की इच्छा है? नारद ने कहा– भगवन! लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और जगत को पावन बनाने वाली तुलसी–ये चारों देवियाँ भगवान नारायण की ही प्रिया हैं। यह प्रसंग तथा गंगा के वैकुण्ठ को जाने की बात मैं आपसे सुन चुका; परंतु गंगा विष्णु की पत्नी कैसे हुई, यह वृत्तान्त सुनने का सुअवसर मुझे नहीं मिला। उसे कृपया सुनाइये। भगवान नारायण बोले– नारद! जब गंगा वैकुण्ठ में चली गयी, तब थोड़ी देर के बाद जगत की व्यवस्था करने वाले ब्रह्मा भी उसके साथ ही वैकुण्ठ पहुँचे और जगत्प्रभु भगवान श्रीहरि को प्रणाम करके कहने लगे। ब्रह्मा जी ने कहा– भगवन! श्रीराधा और श्रीकृष्ण के अंग से प्रकट हुई ब्रह्मद्रव्यरूपिणी गंगा इस समय एक सुशीला देवी के रूप में विराजमान है। दिव्य यौवन से सम्पन्न होने के कारण उसका शरीर परम मनोहर जान पड़ता है। शुद्ध एवं सत्त्वस्वरूपिणी उस देवी में क्रोध और अहंकार लेशमात्र के लिये भी नहीं है। श्रीकृष्ण के अंग से प्रकट हुई वह गंगा उन्हें छोड़ किसी दूसरे को पति नहीं बनाना चाहती। किंतु परम तेजस्विनी राधा ऐसा नहीं चाहती। वह मानिनी राधा इस गंगा को पी जाना चाहती थी, परंतु बड़ी बुद्धिमानी के साथ यह परमात्मा श्रीकृष्ण के चरणकमलों में प्रविष्ट हो गयी, इसी से रक्षा हुई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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