देवपूजा, देवनाम, देवताओं के गुणों का कीर्तन, वेद, शास्त्र, पुराण, संत, सत्य, धर्म, ग्रामदेवता, व्रत, तप और उपवास– ये सब भी उनके साथ ही इस भारत से चले जायेंगे।[1]
प्रायः सभी लोग मद्य और मांस का सेवन करेंगे। झूठ और कपट से किसी को घृणा न होगी। उपर्युक्त देवी एवं देवताओं के भारतवर्ष छोड़ देने के पश्चात् शठ, क्रूर, दाम्भिक, अत्यन्त अहंकारी, चोर, हिंसक– ये सब संसार में फैल जायेंगे। पुरुषभेद[2]होगा। अपने अथवा पुरुष का भेद, स्त्री का भेद, विवाह, वाद-निर्णय, जाति या वर्ण का निर्णय, अपने या पराये स्वामी का भेद तथा अपनी-परायी वस्तुओं का भेद भी आगे चलकर नहीं रहेगा। सभी पुरुष स्त्रियों के अधीन होकर रहेंगे। घर-घर में पुंश्चलियों का निवास होगा। वे दुराचारिणी स्त्रियाँ सदा डॉट-फटकारकर अपने पतियों को पीटेंगी।
गृहिणी घर की पूरी मालकिन बनी रहेगी, घर का स्वामी नौकर से भी अधिक अधम समझा जायेगा। घर में जो बलवान होंगे, उन्हीं को कर्ता माना जायेगा। भाई-बन्धु वे ही समझे जायेंगे, जिनका सम्बन्ध योनि या जन्म को लेकर होगा, जैसे पुत्र, भाई आदि।[3] विद्याध्ययन के सम्बन्ध रखने वाले गुरु-भाई आदि के साथ कोई बात भी नहीं करेगा। पुरुष अपने ही परिवार के लोगों से अन्य अपरिचित व्यक्तियों की भाँति व्यवहार करेंगे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र– चारों वर्ण अपनी जाति के आचार-विचार को छोड़ देंगे।
संध्या-वन्दन और यज्ञोपवीत आदि संस्कार तो प्रायः बंद ही हो जायेंगे। चारों ही वर्ण म्लेच्छ के समान आचरण करेंगे। प्रायः सभी लोग अपने शास्त्रों को छोड़कर म्लेच्छ-शास्त्र पढ़ेंगे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र– चारों वर्णों के लोग सेवावृत्ति से जीविका चलायेंगे। सम्पूर्ण प्राणियों में सत्य का अभाव हो जायेगा। जमीन पर धान्य नहीं उपजेंगे। वृक्ष फलहीन हो जायेंगे। गौओं में दूध देने की शक्ति नहीं रहेगी। लोग बिना मक्खन के दूध का व्यवहार करेंगे। स्त्री और पुरुष में प्रेम का अभाव होगा। गृहस्थ असत्य भाषण करेंगे।