भगवान श्रीकृष्ण बोले– 'साध्वी तुम नारायण की सेवा स्वीकार करो। वे मेरे ही अंश हैं। उनकी चार भुजाएँ हैं। उन परम सुन्दर तरुण पुरुष में मेरे ही समान सभी सद्गुण वर्तमान हैं। करोड़ों कामदेवों के समान उनकी सुन्दरता है। वे कामिनियों की कामना पूर्ण करने में समर्थ हैं। मैं सबका स्वामी हूँ। सभी मेरा अनुशासन मानते हैं। किन्तु राधा की इच्छा का प्रतिबन्धक मैं नहीं हो सकता। कारण, वे तेज, रूप और गुण– सब में मेरे समान हैं। सबको प्राण अत्यन्त प्रिय हैं, फिर मैं अपने प्राणों की अधिष्ठात्री देवी इन राधा का त्याग करने में कैसे समर्थ हो सकता हूँ? भद्रे! तुम वैकुण्ठ पधारो। तुम्हारे लिये वहीं रहना हितकर होगा। सर्वसमर्थ विष्णु को अपना स्वामी बनाकर दीर्घकाल तक आनन्द का अनुभव करो। तेज, रूप और गुण में तुम्हारे ही समान उनकी एक पत्नी लक्ष्मी भी वहाँ हैं। लक्ष्मी में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान और हिंसा– ये नाममात्र भी नहीं हैं। उनके साथ तुम्हारा समय सदा प्रेमपूर्वक सुख से व्यतीत होगा। विष्णु तुम दोनों का समान रूप से सम्मान करेंगे।'
सुन्दरि! प्रत्येक ब्रह्माण्ड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय पर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी प्रसिद्ध मुनिगण, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस– सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार के उपचारों के द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे। उन संयमशील जितेन्द्रिय पुरुषों के द्वारा कण्वशाखा में कही हुई विधि के अनुसार तुम्हारा ध्यान और पूजन होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। तुम्हारे कवच को भोजपत्र पर लिखकर उसे सोने की डिब्बी में रख गन्ध एवं चन्दन आदि से सुपूजित करके लोग अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक प्रकार से स्तुति-पाठ होगा।
इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चात, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण– इन सब ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तब से ये सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं।
नारद जी बोले– वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ प्रभो! आप भगवती सरस्वती की पूजा का विधान, स्तवन, ध्यान, अभीष्ट कवच, पूजनोपयोगी नैवेद्य, फूल तथा चन्दन आदि का परिचय देने की कृपा कीजिये। इसे सुनने के लिये मेरे हृदय में बड़ा कौतूहल हो रहा है।