‘प्रभा’ और ‘दाहिका’– ये तेज की दो स्त्रियाँ हैं। इनके अभाव में जगत्स्रष्टा ब्रह्मा अपना कार्य-सम्पादन करने में असमर्थ हैं। ज्वर की दो प्यारी भार्याएँ हैं - ‘जरा’ और ‘मृत्यु’। ये दोनों काल की पुत्रियाँ हैं। इनकी सत्ता न रहे तो ब्रह्मा के बनाये हुए जगत की व्यवस्था ही बिगड़ जाये। निद्रा की कन्या का नाम ‘तन्द्रा’ है। यह और ‘प्रीति’– ये दो सुख की प्रियाएँ हैं। ब्रह्मपुत्र नारद! विधि के विधान में बना रहने वाला यह सारा जगत इनसे व्याप्त है। ‘श्रद्धा’ और ‘भक्ति’– ये वैराग्य की दो परम आदरणीय पत्नियाँ हैं। मुने! इनके कृपा-प्रसाद से अखिल जगत सदा जीवन्मुक्त हो सकता है। देवमाता ‘अदिति’, गौओं को उत्पन्न करने वाली ‘सुरभि’, दैत्यों की माता ‘दिति’, ‘कद्रू’, ‘विनता’ और ‘दनु’– ये सभी देवियाँ सृष्टि का कार्य सँभालती हैं। इन्हें भगवती प्रकृति की ‘कला’ कहा जाता है। अन्य भी बहुत-सी कलाएँ हैं। कुछ कलाओं का परिचय कराता हूँ, सुनो।
चन्द्रमा की पत्नी ‘रोहिणी’ और सूर्य की ‘संज्ञा’ हैं। मनु की भार्या का नाम ‘शतरूपा’ है। ‘शची’ इन्द्र की धर्मपत्नी हैं। बृहस्पति की सहधर्मिणी ‘तारा’ हैं। ‘अरुन्धती’ वसिष्ठ मुनि की धर्मपत्नी हैं। ‘अहल्या’ गौतम की, ‘अनसूया’ अत्रि की, ‘देवहूति’ कर्दम मुनि की और ‘प्रसूति’ दक्ष की पत्नियाँ हैं। पितरों की मानसी कन्या ‘मेनका’ पार्वती की जननी हैं। ‘लोपामुद्रा’, ‘आहूति’, कुबेर की पत्नी, वरुण की पत्नी, यम की पत्नी ‘बलि की भार्या विन्ध्यावली’, ‘कुन्ती’, ‘दमयन्ती’, ‘यशोदा’, ‘सती देवकी’, ‘गान्धारी’, ‘द्रौपदी’, ‘शैव्या’, ‘सत्यवान की पत्नी सावित्री’, ‘राधा की जननी वृषभानुप्रिया कलावती’, ‘मन्दोदरी’, ‘कौसल्या’, ‘सुभद्रा’, ‘कैकेयी’, ‘रेवती’ ‘सत्यभामा’, ‘कालिन्दी’, ‘लक्ष्मणा’, ‘जाम्बवती’, ‘नाग्नजिती’, ‘मित्रविन्दा’, ‘रुक्मिणी’, ‘सीता’– जो स्वयं लक्ष्मी कहलाती हैं। ‘व्यास को जन्म देने वाली महासती योजनगन्धा’, ‘काली’, ‘बाणपुत्री उषा’ उसकी सखी ‘चित्रलेखा’, ‘प्रभावती’, ‘भानुमती’, ‘सती मायावती’, ‘परशुराम जी की माता रेणुका’, ‘हलधर बलराम की जननी रोहिणी’ और ‘श्रीकृष्ण की परम साध्वी बहिन दुर्गास्वरूपा एकानंशा’ आदि भारतवर्ष में भगवती प्रकृति की बहुत-सी कलाएँ विख्यात हैं। जो-जो ग्राम-देवियाँ हैं, वे सभी प्रकृति की कलाएँ हैं।
प्रत्येक लोक में जितनी स्त्रियाँ हैं, उन सबको प्रकृति की कला के अंश का अंश समझना चाहिये। इसीलिये स्त्रियों के अपमान से प्रकृति का अपमान माना जाता है। जो पति और पुत्र वाली साध्वी ब्राह्मणी की वस्त्र, अलंकार और चन्दन से पूजा करता है, उसके द्वारा भगवती प्रकृति की पूजा सम्पन्न होती है। जिसने ब्राह्मण की अष्टवर्षा कुमारी का वस्त्र, अलंकार एवं चन्दन आदि से अर्चन कर लिया, उसके द्वारा भगवती प्रकृति के अंश से उत्पन्न हैं। जो श्रेष्ठ आचरणवाली तथा पतिव्रता स्त्रियाँ हैं, इन्हें प्रकृति देवी का सत्त्वांश समझना चाहिये।