ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 38-39
मुने! देवराज इंद्र ने इस सूत्ररूप मन्त्र को पढ़कर भगवती महालक्ष्मी को उपर्युक्त द्रव्य समर्पण करने के पश्चात् भक्तिपूर्वक विधि सहित उनके मूलमंत्र दस लाख जप किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें मन्त्र सिद्धि प्राप्त हो गयी। यह मूल-मंत्र सभी के लिये कल्पवृक्ष के समान है। ब्रह्मा जी की कृपा से यह उन्हें प्राप्त हुआ था। पूर्व में श्रीबीज[1], मायाबीज[2], कामबीज[3] और वीणाबीज[4] का प्रयोग करके 'कमलवासिनी' इस शब्द के अंत में 'ड़े' विभक्ति लगाने पर अंत में 'स्वाहा' शब्द जोड़ दिया जाय श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा यही इस मन्त्रराज का स्वरूपा है। कुबेर ने इसी मन्त्र से भगवती महालक्ष्मी की आराधना करके परम ऐश्वर्य प्राप्त किया। इसी मन्त्र के प्रभाव से दक्षसावर्णी मनु को राजाधिराज की पदवी प्राप्त हुई है तथा मंगल सातों द्वीपों के राजा हुए हैं। नारद! प्रियव्रत, उत्तानपाद तथा राजा केदार- इन सिद्धपुरुषों को राजेन्द्र कहलाने का सौभाग्य इसी मन्त्र ने दिया है। इस मन्त्र के सिद्ध हो जाने पर भगवती महालक्ष्मी ने इन्द्र को दर्शन दिये। उस समय वे वरदायिनी सर्वोत्तम रत्न से निर्मित विमान पर विराजमान थीं और अपनी प्रभा से सप्तद्वीपवती पृथ्वी को आच्छादित कर रही थीं। उनकी अंगकान्ति श्वेत चम्पा के पुष्प के समान थी। रत्नमय भूषण उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। उनके मुख पर मुस्कान छायी थी। भक्त पर कृपा करने के लिये वे परम आतुर थीं। उनके गले में रत्नों का हार शोभा पा रहा था। असंख्य चन्द्रमा के समान उनकी प्रभा थी। ऐसी शान्तस्वरूपा जगदम्बा भगवती महालक्ष्मी को देखकर देवराज इन्द्र उनकी स्तुति करने लगे।
देवराज इन्द्र बोले– भगवती कमलवासिनी को नमस्कार है। देवी नारायणी को बार-बार नमस्कार है। संसार की सारभूता कृष्णप्रिया भगवती पद्मा को अनेकशः नमस्कार है। कमलरत्न के समान नेत्र वाली कमलमुखी भगवती महालक्ष्मी को नमस्कार है। पद्मासना, पद्मिनी एवं वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध भगवती महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है। सर्वसम्पत्स्वरूपिणी सर्वदात्री देवी को नमस्कार है। सुखदायिनी, मोक्षदायिनी और सिद्धिदायिनी देवी को बारंबार नमस्कार है। भगवान श्रीहरि में भक्ति उत्पन्न करने वाली तथा हर्ष प्रदान करने में परम कुशल देवी को बार-बार नमस्कार है। भगवान श्रीकृष्ण के वक्षःस्थल पर विराजमान एवं उनकी हृदेश्वरी देवी को बारंबार प्रणाम है। रत्नपद्मे! शोभने! तुम श्रीकृष्ण की शोभास्वरूपा हो, सम्पूर्ण सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी एवं महादेवी हो; तुम्हें मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ। शस्य की अधिष्ठात्री देवी एवं शस्यस्वरूपा हो, तुम्हें बारंबार नमस्कार है। बुद्धिस्वरूपा एवं बुद्धिप्रदा भगवती के लिये अनेकशः प्रणाम है। देवि! तुम वैकुण्ठ में महालक्ष्मी, क्षीरसमुद्र में लक्ष्मी, राजाओं के भवन में राजलक्ष्मी, इन्द्र के स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, गृहस्थों के घर में गृहलक्ष्मी, प्रत्येक घर में गृह देवता, गोमाता सुरभि और यज्ञ की पत्नी दक्षिणा के रूप में विराजमान रहती हो। तुम देवताओं की माता अदिति हो। कमलालयवासिनी कमला की तुम्हीं हो। हव्य प्रदान करने समय ‘स्वाहा’ और कव्य प्रदान करने के अवसर पर ‘स्वधा’ का जो उच्चारण होता है, वह तुम्हारा ही नाम है। सबको धारण करने वाली विष्णुस्वरूपा पृथ्वी तुम्हीं हो। भगवान नारायण की उपासना में सदा तत्पर रहने वाली देवि! तुम शुद्ध सत्त्वस्वरूपा हो। तुममें क्रोध और हिंसा के लिये किञ्चिन्मात्र भी स्थान नहीं है। तुम्हें वरदा, शारदा, शुभा, परमार्थदा एवं हरिहास्यप्रदा कहते हैं। तुम्हारे बिना सारा जगत भस्मीभूत एवं निःसार है। जीते-जी ही मृतक है, शव के तुल्य है। तुम सम्पूर्ण प्राणियों की श्रेष्ठ माता हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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