ब्रत पूरन कियौ नंद-कुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूही


ब्रत पूरन कियौ नंद-कुमार। जुवतिनि के मेटे जंजार।।
जप तप करि तनु अब जनि गारौ। तुम घरनी मैं कंत तुम्हारौ।।
अंतर सोच दूरि करि डारौ। मेरौ कह्यौ सत्य उर धारौ।।
सरद-रास तुम आस पुराऊँ। अंकम भरि सबकौं उर लाऊँ।।
यह सुनि सब मन हरष बढ़ायौ। मन-मन कह्यौ कृष्न पति पायौ।।
जाहु सबै घर घोष-कुमारी। सरद-रास दैंहौं सुख भारी।।
सूर स्याम प्रगटे गिरिधारी। आनंद सहित गईं घर नारी।।797।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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