ब्रज मैं एकै धरम रह्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


ब्रज मैं एकै धरम रह्यौ।
स्रुति सुमृति औ बेद पुराननि, सबै गोविंद कह्यौ।।
बालक बृद्ध तरुन अबलनि कौ, एक प्रेम निबह्यौ।
'सूरदास' प्रभु छाड़ि जमुन जल, हरि की सरन गह्यौ।।4139।।

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