ब्रज की लीला देखि 6 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री
बाल-वत्‍स-हरन की दूसरी लीला



मथुरा आदि अनादि देह धरि आपुन आए।
धनि देवै बसुदेव पुत्र तुम माँगे पाए।
चारि बदन मैं कह कहौ, सहसानन नहिं जान।
गाइ चरावत ग्वाल संग करत नंद की आन।
जोगी जन अवराधि फिरत जिहिं ध्यान लगाए।
ते ब्रजवासिनि संग फिरत अति प्रेम बढ़ाए।
बृंदाबन ब्रज कौ महत कापै बरन्यौ जाइ।
चतुरानन पग परसि कै लोक गयौ सुख पाइ।
हरि लीला अवतार पार सारद नहिं पावै।
सतगुरु-कृपा-प्रसाद कछुक तातैं कहि आवै।
सूरदास कैसे कहै हरि-गुन कौ बिस्तार।
सेष सहस मुख रटत है तउ न पावै पार।।492।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः