ब्रज की बात भई अब न्यारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


 
ब्रज की बात भई अब न्यारी।
तिहिं सुंदरि मधि जोग गाइयतु, जहँ गावत गिरिधारी।।
रिपु रन मारि रहे सब दिसि त्यौ, भिच्छु कथा विस्तारी।
‘सूर’ व्यथित दिन सकुचि कुमुदिनी, निसि हेमंत प्रजारी।।3713।।

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