ब्रज-जुवती हरि-चरन मनावैं।
जे पद-कमल महा-मुनि-दुर्लभ, सपनेहूँ नहिं पावैं।
तनु त्रिभंग, जुग जानु एक पग, ठाढ़े इक दरसाए।
अंकुल-कुलिस-ब्रज-ध्वज परगट, तरुनी-मन भरमाए।
वह छबि देखि रहीं इकटक हीं, मन-मन करत बिचार।
सूरदास मनु अरुन कमल पर, सुषमा करति बिहार।।631।।