ब्रजहिं चलौ आई अब साँझ।
सुरभी सबै लेहु आगैं करि, रैनि होइ जनि बनहीं माँझ।
भली कही यह बात कन्हाई, अतिहीं सघन अरन्य उजारि।
गैया हाँकि चलाई ब्रज कौं और ग्वाल सब लए पुकारि।
निकसि गए बन तैं जब बाहिर, अति आनंद भए सब ग्वाल।
सूरदास प्रभु मुरलि बजावत, ब्रज आवत नटवर गोपाल।।472।।