ब्रजबासी सब सोवत पाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


ब्रजबासी सब सोवत पाए।
नंद-सुबन मति ऐसी ठानी, उनि घर लोग जगाए।।
उठे प्रात-गाथा मुख भाषत, आतुर रैनि बिहानी।
ऐंडत अंग जम्हात बदन भरि, कहत सबै यह बानी।।
जो जैसे सो तैसे लागे अपनैं-अपनैं काज।
सूर स्याम के चरित अगोचर, राखी कुल की लाज।।1170।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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