बिनु हरि क्यौ राखै मन धीर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


 
बिनु हरि क्यौ राखै मन धीर।
एक बेर हरिदरस दिखावहु, सुंदर स्याम सरीर।।
तुम जु दयाल दयानिधि कहियत, जानत हौ पर पीर।
बिछुरै प्रान, नाथ ब्रज आवै, कटित हम कत जदुवीर।।
मत अपजस आनौ सिर अपनै, कठिन मदन की पीर।
'सूरदास' प्रभु मिलन कहत है, रवितनया के तीर।।3718।।

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