बिनु जानैं हरि वाहि बढ़ाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


बिनु जानैं हरि वाहि बढ़ाई।
वह तो मिली बचन मधुरे कहि, सुनतहि दई बड़ाई।।
रिझै लियौं हरि कौं टोना करि, तुरतहिं बिलंब न लाई।
उन लै कर अधरनि पर धारी, अनुपम राग बजाई।।
मानहुँ एकहि संग रहे ते, ऐसैं मिले कन्हाई।
सूर स्याम हम सबनि बिसारी, जबहीं तैं वह आई।।1316।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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