बिधु बैरी सिर पर बसै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


बिधु बैरी सिर पर बसै, निसि नींद न परई।
हरि सुरभानु सुभट बिना इहि को बस करई?
गगन सिखर उतरै चढ़ै, गर्वहिं जिय धरई।
किरनि सकति भुज भरि हनै, उर तै न निकरई।।
उडु परिवार पिसुन सभा अपजसहि न डरई।
सोइ परपंच करै सखी, अबला ज्यौ बरई।।
घटै बढ़ै इहि पाप तै, कालिमा न टरई।
'सूरदास' समुझावही, त्यौ त्यौ जिय खरई।। 3358।।

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