बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 95

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

15. सुनाऊँ किसको मनकी बात

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किंतु पहले पूछ लेना उचित है-
‘बोलो, सुनोगे मेरे मन की व्यथा?
हाय राम! तुम तो लुढ़क कर दूर भागने लगे।
आह!
जड़ और कठोर हृदय पत्थर की आज यह दशा है।
प्राणप्यारे!
क्या तुम्हारा हृदय पत्थर से भी अधिक कठोर है?
कौन जाने, हो सकता है।
अच्छा पाषाण!
तुम व्यर्थ कष्ट मत सहो,
मुझ अभागिन को ही तड़पने दो।
तुम शान्ति पूर्वक हृदय में वेदना छिपाये
उस निर्दयी की प्रतीक्षा करो,
मैं और किसी को ढूँढ लूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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