किंतु पहले पूछ लेना उचित है-
‘बोलो, सुनोगे मेरे मन की व्यथा?
हाय राम! तुम तो लुढ़क कर दूर भागने लगे।
आह!
जड़ और कठोर हृदय पत्थर की आज यह दशा है।
प्राणप्यारे!
क्या तुम्हारा हृदय पत्थर से भी अधिक कठोर है?
कौन जाने, हो सकता है।
अच्छा पाषाण!
तुम व्यर्थ कष्ट मत सहो,
मुझ अभागिन को ही तड़पने दो।
तुम शान्ति पूर्वक हृदय में वेदना छिपाये
उस निर्दयी की प्रतीक्षा करो,
मैं और किसी को ढूँढ लूँगी।