बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 93

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

15. सुनाऊँ किसको मनकी बात

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बिना कहे काम न चलेगा।
भीतर ही भीतर हृदय छलनी हो जायगा।
चलूँ वनकी ओर,
वहाँ शायद कोई सुनने वाला मिल जाय!
सुकुमार पक्षियों! तुम मेरे मन की बात सुनोगे?
अरे, तुम तो फड़फड़ाकर उड़ चले।
चें-चें करके शायद तुम भी रो रहे हो।
ठहरो तो,
इतनी जल्दी मत भागो।
मेरी बात न सुनना,
कुछ देर बैठकर परस्पर नेत्रों द्वारा बात करें।
किंतु तुम क्यों मानने लगे!
हा विधाता! आज सभी मुझसे दूर भाग रहे हैं,
जैसे मेरे शरीर से लपट निकलकर
इनको भस्म कर देगी।
अच्छी बात है जाओ,
अपना क्या वश है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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