वह कह देगा,
बस-बस यह सब हम भी जानते हैं।
यह कहकर शायद वह वहाँ से चल भी दे।
ठीक यही दशा मेरी है।
यहाँ तो सभी के हृदय में घाव है,
सभी मनमोहन के विरह में तड़प रहे हैं,
सभी एक ही रोग के रोगी हैं।
कोई खुलकर आँसू बहाता है,
कोई चुपचाप पी लेता है।
हृदय की यह कसक किसी के लिये नयी बात नहीं है।
जब अपने ही हृदय में आग लगी हो
तो कोई किसी की कसक की परवा कैसे करे?