बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 86

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

14. कोई तो बताये

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अरे भाई! तुममें से कोई तो बोले?
बड़े गँवार जान पड़ते हो।
मैं पूछती हूँ,
तुम मुसकराते हो।
जाओ भाई! मत बोलो।
आज साधारण-से-साधारण जीव भी
मेरा उपहास कर सकता है।
समय की बात है,
और क्या कहूँ!
अहा! कबूतरों का एक दल उधर ही से उड़ा आ रहा है।
इनके लिये तो कहीं रुकावट नहीं।
ये अवश्य ही राजभवन के आले-आलमारी में बैठकर
मोहन को देखते रहे होंगे।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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