सच कहती हूँ माधव!
तुम्हारे न आने का दुःख तो है ही, किंतु
उससे अधिक है तुम्हारा समाचार न मिलने का।
हम भले ही विरहाग्नि में जला करें, किंतु
तुम सब प्रकार से प्रसन्न रहो,
तुम्हारे मस्तक पर विषाद की एक हल्की रेखातक न झलके,
हमलोगों की यही कामना है।
प्यारे कान्हा!
आखिर तुमने ऐसी निठुरता किसलिये धारण की है?
कुछ समझमें नहीं आता!
तुम्हारी मर्यादा का ध्यान करके मैं वहाँ नहीं आती,
और तुम समाचार भेजते नहीं,
तब कैसे बनेगा?