बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 8

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

2. क्या मैं बावरी हूँ?

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आने का नाम भी नहीं लेते।
अब आ जाओ माधव!
बहुत दिन हो गये,
प्राण निकलने पर ही आये तो क्या आये।
अच्छा डरो मत,
मैं कुछ न कहूँगी।
हा, प्यारे!
मैं जो कह गयी थी,
क्या तुम्हें उसपर विश्वास हो गया?
जब तुम तिरछे खड़े होकर तनिक मुस्करा दोगे,
तब क्या मुझसे रूठा जायगा?
तुम्हारे कोमल चरणों का स्पर्श अब तक नहीं भूलता,
तुम्हारे आने पर उस आनन्द को पाने के लिये
जी तड़प उठेगा।
इतना अवकाश ही तुम्हें कब मिलेगा कि
तुम मेरे पैर पड़ो
मैं तो तुम्हें देखते ही स्वयं तुम्हारे चरणों पर गिर पडूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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