कुछ ही देर में अपना अन्त करके।
अपने प्रेममय जीवन तथा
प्रिय की आशा का भी अन्त कर देना ठीक नहीं।
जीते रहने पर प्रिय भी मिलने की आशा रख सकता है!
प्राण त्याग देने से तो उसकी आशा भी टूट जाती है।
चकवा-चकवी रात्रिभर वियोग की आग में जलते रहते हैं,
किंतु कोई भी प्राण त्याग नहीं करता।
उसमें से यदि एक प्राण त्याग दे तो वह
अपने प्रिय के आशापूर्ण आन्नद को भी समाप्त कर जायगा।
वे नहीं मरते, अच्छा करते हैं।
चकोर को पंद्रह दिन तक चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते,
तो क्या वह मर जाता है?
वह इसी आशा में पीड़ा सहता रहता है कि
कभी तो दर्शन होंगे।