बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 76

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

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यह भी बात नहीं कि
तड़प-तड़प कर
बहुत लंबे समय तक जीवन धारण करती हों,
कुछ क्षण में उनकी तड़पन इतनी बढ़ जाती है कि
बरबस शान्त हो जाती हैं।
जल का तनिक भी वियोग उनसे सहन नहीं हो सकता।
एक मैं हूँ!
तड़पती तो मैं भी हूँ,
किंतु केवल तड़पती भर हूँ।
मेरी तड़पन में उतना वेग नहीं
जो दुःखों से छुटकारा दिला सके।
इतने दिनों से व्यर्थ ही जी रही हूँ।
तो क्या करूँ?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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