यह भी बात नहीं कि
तड़प-तड़प कर
बहुत लंबे समय तक जीवन धारण करती हों,
कुछ क्षण में उनकी तड़पन इतनी बढ़ जाती है कि
बरबस शान्त हो जाती हैं।
जल का तनिक भी वियोग उनसे सहन नहीं हो सकता।
एक मैं हूँ!
तड़पती तो मैं भी हूँ,
किंतु केवल तड़पती भर हूँ।
मेरी तड़पन में उतना वेग नहीं
जो दुःखों से छुटकारा दिला सके।
इतने दिनों से व्यर्थ ही जी रही हूँ।
तो क्या करूँ?