नहीं-नहीं, बहन! मैं कुछ न कहलाऊँगी।
अभी तो तू प्रेम में मतवाली होकर जा रही है,
वहाँ अनुकूल सम्मान न पाकर पता नहीं तेरा क्या हो जाय?
कहीं क्रोध में आकर तू राजसभा में घुस गयी तो?
अपनी बात करके मेरा संदेश भी कह डालेगी।
राजसभासद् मेरे कन्हैया के विषय में क्या सोचेंगे?
क्षमा कर, बहन!
मुझे कुछ नहीं कहालाना।
हमारे श्याम सब प्रकार से सुखी रहें,
यही कामना है।
मैं यहाँ तड़प लूँगी।
तू यह भी न कहना कि
मुझे अमुक सखी मिली थी।
कुछ कहलाते-कहलाते रुक गयी।
हाथ जोड़ती हूँ, बहन!
तुझे तेरे नटवर की सौगंध,
तु कुछ न कहना।
(माथेपर दोनों हाथ रखकर वहीं बैठ जाती है।)