बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 74

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

12. कुछ न कहना

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नहीं-नहीं, बहन! मैं कुछ न कहलाऊँगी।
अभी तो तू प्रेम में मतवाली होकर जा रही है,
वहाँ अनुकूल सम्मान न पाकर पता नहीं तेरा क्या हो जाय?
कहीं क्रोध में आकर तू राजसभा में घुस गयी तो?
अपनी बात करके मेरा संदेश भी कह डालेगी।
राजसभासद् मेरे कन्हैया के विषय में क्या सोचेंगे?
क्षमा कर, बहन!
मुझे कुछ नहीं कहालाना।
हमारे श्याम सब प्रकार से सुखी रहें,
यही कामना है।
मैं यहाँ तड़प लूँगी।
तू यह भी न कहना कि
मुझे अमुक सखी मिली थी।
कुछ कहलाते-कहलाते रुक गयी।
हाथ जोड़ती हूँ, बहन!
तुझे तेरे नटवर की सौगंध,
तु कुछ न कहना।
(माथेपर दोनों हाथ रखकर वहीं बैठ जाती है।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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