बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 71

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

12. कुछ न कहना

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वे जाकर राजराजेश्वर महाराज मथुराधीश श्रीकृष्ण........
आह, श्रीकृष्णचन्द्रजी से कहेंगे
वृन्दावन से एक अस्त-मस्त रमणी आपसे मिलने आयी है।
सम्भव है राजकाज के कारण उनको शीघ्र समय न मिल सके,
इस दीवानी को इस बात का क्या पता?
राजद्वार पर खड़े होकर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी,
तब नशा उतरेगा।
अभी अच्छा है,
सुन ले, बहन; मत जा।
मैं तेरे भले की कहती हूँ।
यहीं छटपटाना अच्छा है,
पर वहाँ जाना ठीक नहीं!
जाना ही होता तो क्या मैं राह नहीं जानती थी
या चल नहीं सकती थी?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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