बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 65

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

11. कूबरी! तू धन्य है

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आह, हृदय विदीर्ण क्यों नहीं हो जाता।
वाह रे समय,
वाह रे विधि-विधान,
तू इतना प्रबल है?
पर समय या विधान क्या करे,
नटवर ने तो स्वयं ही यह स्वीकार किया है।
न जाने उनको क्या पागलपन सूझा!
बात कुछ समझ में नहीं आती।
हमारे प्रेम को भूल गये,
राधा की ओर से मुँह मोड़ लिया,
प्यारी गायों का मोह छोड़ दिया,
सखाओं की परवा न की,
मैया जसोदा को बिलखा रहे हैं,
और आप कूबरी के प्रेम में बँधे उसकी सेवा कर रहे हैं,
इसमें कुछ रहस्य अवश्य है।
यह साधारण बात नहीं है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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