बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 54

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

9. हाय, यह तो स्वप्न था

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ऐ कण्टकों!
कहाँ गया तुम्हारा नुकीलापन?
अब आओ।
हमारे कान्हा आ गये हैं,
अब तुम्हारा जोर नहीं चलेगा।
अहा, कैसी शीतल-सुगन्धित मन्द-मन्द वायु चल रही है।
लताओं के स्पर्श के कारण
सारा शरीर आनन्द से रोमान्चित हो जाता है।
कितने कोमल पत्ते हैं,
कैसे सुन्दर लाल-लाल फल हैं,
यह भूमि भी मखमली गद्दे से कम नहीं है।
सच मानो प्राणप्यारे!
तुम्हारे बिना ये हम लोगों को बहुत सताते थे।
तुम्ह इन्हें कुछ दण्ड न दोगे?
अच्छा जाने दो।
इस प्रसन्नता के समय दण्ड-वंड की बात कौन चलाये।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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