ऐ कण्टकों!
कहाँ गया तुम्हारा नुकीलापन?
अब आओ।
हमारे कान्हा आ गये हैं,
अब तुम्हारा जोर नहीं चलेगा।
अहा, कैसी शीतल-सुगन्धित मन्द-मन्द वायु चल रही है।
लताओं के स्पर्श के कारण
सारा शरीर आनन्द से रोमान्चित हो जाता है।
कितने कोमल पत्ते हैं,
कैसे सुन्दर लाल-लाल फल हैं,
यह भूमि भी मखमली गद्दे से कम नहीं है।
सच मानो प्राणप्यारे!
तुम्हारे बिना ये हम लोगों को बहुत सताते थे।
तुम्ह इन्हें कुछ दण्ड न दोगे?
अच्छा जाने दो।
इस प्रसन्नता के समय दण्ड-वंड की बात कौन चलाये।