बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 51

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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आह, सुन भाई!
खड़ा तो हो जा
दौड़ते हुए बोला नहीं जाता।
हाँ, यह.........हाँड़ी भर.........मक्खन.........
आह!
मेरे कन्हैया को दे देना।
क्या कहता है?
इतना मक्खन उनके पास पहुँचेगा कैसे?
वहाँ तो बड़े-बड़े राजाओं की भेंट कठिनाई से पहुँचती है।
ठीक कहता है।
अरे, तू तो चल पड़ा।
कुछ बात भी न करेगा?
किसको पड़ी है, जो मुझसे बात करे।
हाय, माखनचोर!
इस मक्खन का कोई ग्राहक नहीं।
बड़ी आशा से दौड़कर आयी थी।
अब पैरों में इतनी शक्ति नहीं कि जल्दी लौट सकूँ।
हाँ, प्राणप्यारे!
तुम्हीं बताओ,
इस मक्खन का क्या करूँ?
(माथा पकड़कर बैठ जाती है, नेत्र बंद हो जाते हैं।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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