आह, सुन भाई!
खड़ा तो हो जा
दौड़ते हुए बोला नहीं जाता।
हाँ, यह.........हाँड़ी भर.........मक्खन.........
आह!
मेरे कन्हैया को दे देना।
क्या कहता है?
इतना मक्खन उनके पास पहुँचेगा कैसे?
वहाँ तो बड़े-बड़े राजाओं की भेंट कठिनाई से पहुँचती है।
ठीक कहता है।
अरे, तू तो चल पड़ा।
कुछ बात भी न करेगा?
किसको पड़ी है, जो मुझसे बात करे।
हाय, माखनचोर!
इस मक्खन का कोई ग्राहक नहीं।
बड़ी आशा से दौड़कर आयी थी।
अब पैरों में इतनी शक्ति नहीं कि जल्दी लौट सकूँ।
हाँ, प्राणप्यारे!
तुम्हीं बताओ,
इस मक्खन का क्या करूँ?
(माथा पकड़कर बैठ जाती है, नेत्र बंद हो जाते हैं।)