बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 34

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

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क्या कहा? देखकर क्यों नहीं चलती?
देखकर क्या चलूँ निर्दयी!
आँख खोलते ही गरम-गरम सेरों धूल
आँख में भर जाती है।
आँख में धूल ही भर जायगी
तो कन्हैया को देखूँगी कैसे?
अच्छा क्षमा कर भाई!
मेरा ही अपराध था।
तुझसे कौन झगड़े।
मुझे तो वहाँ उस कुंज में जाना है।
आह! आ गया कुंज।
धीरे-धीरे चलूँ,
पीछे से जाकर चितचोर की आँखें बंद कर लूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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