बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 33

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

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हा प्रियतम!
देखो, अभी पसीने से सारी साड़ी भींग गयी।
आग पर चल रहीं हूँ,
गर्म लूके झकोरे बार-बार पीछे ढकेलते हैं,
कहीं तुम भी साथ होते
तो इन सबकी क्या मजाल थी जो कष्ट देते।
तुम्हारी मुस्कराती हुई मुधर मूर्ति के दर्शन
यदि अंगारों पर भी खड़े होकर मिलें,
तो हम लोग सहर्ष स्वीकार कर लेंगी।
आह, सर फटा जा रहा है।
नेत्र खुलते नहीं।
कोई बात नहीं माधव!
कुंज आना ही चाहता है।
हाय, कठोर पत्थर!
तुझे मेरे ही मार्ग में पड़ना था?
देख तो, ठोकर खाकर मैं कितने जोर से गिरी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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