हा प्रियतम!
देखो, अभी पसीने से सारी साड़ी भींग गयी।
आग पर चल रहीं हूँ,
गर्म लूके झकोरे बार-बार पीछे ढकेलते हैं,
कहीं तुम भी साथ होते
तो इन सबकी क्या मजाल थी जो कष्ट देते।
तुम्हारी मुस्कराती हुई मुधर मूर्ति के दर्शन
यदि अंगारों पर भी खड़े होकर मिलें,
तो हम लोग सहर्ष स्वीकार कर लेंगी।
आह, सर फटा जा रहा है।
नेत्र खुलते नहीं।
कोई बात नहीं माधव!
कुंज आना ही चाहता है।
हाय, कठोर पत्थर!
तुझे मेरे ही मार्ग में पड़ना था?
देख तो, ठोकर खाकर मैं कितने जोर से गिरी।