बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 31

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

Prev.png

अच्छी कही तूने,
वे चुपके से आये हैं, किसी को बताना नहीं चाहते।
और तुझे उनकी बात मालूम हो गयी?
क्यों, है न यही तात्पर्य?
तो इसका अर्थ यह हुआ कि
सारे ब्रज में मैं ही एक भाग्यशालिनी हूँ
जिसे उनके आने का पता चल गया।
मैं जाकर उनके दर्शन कर आऊँगी
और दूसरी गोपियाँ यों ही रह जायँगी,
यही कहता है न?
वाह रे मेरा भाग्य!
तुझे क्या कहूँ।
अप्रसन्न मत हो मन!
तेरे कहने से मैं चलूँगी अवश्य;
किंतु और किसी को खबर न करूँगी।
क्योंकि कहीं वे वहाँ न हुए तो
व्यर्थ में बेचारियों को कष्ट होगा।
उनके घावपर नमक और पड़ जायगा।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः