बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 30

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

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अच्छा, थोड़ी देर के लिये तेरी बात मान ली।
किंतु यह तो बता कि
यदि मनमोहन कुंज में बैठे मुरली बजा रहे हैं
तो मुझे सुनायी क्यों नहीं देती?
उनकी मुरली तो इतने उच्चस्वर से बजती थी कि
घर-घर की गोपियाँ सुन लेती थीं।
इसका क्या उत्तर देता है?
क्या कहा?
मान करके आये हैं,
छिपे हुए हैं,
थोड़ी देर में फिर चले जायँगे,
किसी को बताना नहीं चाहते कि वे कुंज में हैं।
इसी से धीरे-धीरे मुरली बजा रहे हैं।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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