बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 21

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

4. और कूक

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क्या तुम सचमुच अब न आओगे?
तुम्हें वे बातें याद नहीं आतीं?
तुम्हारा वो कोमल हृदय कहाँ गया?
निठुर श्याम!
तुम्हारी वो कोमलता बनावटी थी,
यह कठोरता ही सत्य है।
हम लोगों ने खूब धोखा खाया।
अरी काली कोयल!
तू यहाँ भी आ गयी?
हा श्यामसुंदर!
देखो, यह कोयल मुझे बेध रही है।
आकर बचाओ।
इसकी एक-एक कूक
नस-नस में भिदकर
मुझे व्याकुल कर रही है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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