ठहर, निगोड़े दर्पण!
बार-बार गिर क्यों पड़ता है?
मेरे काम में बाधा देते तुझे लज्जा नहीं आती?
मेरी समझ में तो अब कुछ कसर नहीं है।
अरे हाँ, पैरों में महावर नहीं लगाया।
संकोच के कारण कन्हैया के नेत्र नीचे ही रहेंगे,
मेरे पैरों पर उनकी दृष्टि अवश्य ठहरेगी।
इसलिये पैरों को सूना रखना ठीक नहीं,
खूब चटक महावर लगाना चाहिये।
हाँ, अब ठीक है।
सासजी!
पतिदेव!
क्षमा करना,
मनमोहन के वियोग को सहन करने की शक्ति
अब नहीं रह गयी,
इसी से आप लोगों की सेवा छोड़कर जा रही हूँ।