तुम्हारी रास-लीलाओं से भी सभी परिचित थे।
आह क्या कहूँ!
अब तो साचना-ही-सोचना हाथ रह गया!
मेरी कुछ सखियों ने कितनी अच्छी सम्मति दी थी,
पर मैं तो अपने आत्मविश्वास पर भूली थी।
उनकी बात मान लेती
तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।
कुछ ने तो यह कहा था,
‘तेरे भाग्य खुल गये, सखी!
उस जन्म में तूने अवश्य ही अत्यन्त पुण्य कार्य किये होंगे,
तभी तो मुरली वाले के ग्राम में ब्याह कर जा रही है!
वृन्दावन-विहारी, शोभा-सागर प्यारे कन्हैया की छवि का
दर्शन करके तेरे नेत्र सफल होंगे।
उनकी मादक मुरली की मधुर तान सुनकर
तू आनन्द-मग्न हो जायगी।