बाबरी कहा धौं अब बाँसुरी सौं तू लरे।
उनहीं सौं प्रेम-नेम, तुम सौं नाहिंन आली, यातैं गिरधारीलाल लै लै अधरा धरै।।
जौ लौं मधु पीवति रहति, तौलौं जीवित है, घरी धरी पल पल छिनु नहिं बिसरै।
सूरदास प्रभु वाकैं रस-बस भए रहैं, तातैं वाकी सरबरि कहो कौन धौं करौ।।1290।।