बाल-विनोद भावती लीला, अति पुनीत मुनि भाषी।
सावधान ह्वै सुनौ परीच्छित, सकल देव मुनि साखी।
कालिंदी कै कूल बसत इक मधुपुरि नगर रसाला।
कालनेमि अरु उग्रसेन-कुल, उपज्यौ कंस भुवाला।
आदि-ब्रह्म-जननी, सुर-देवी, नाम देवकी बाला।
दई बिवाहि कंस बसुदेवहिं , दुख-भंजन, सुख-माला।
हय-गय-रतन-हेम-पाटंबर, आनंद-मंगलचारा।
समदत भई अनाहत बानी, कंस-कान झनकारा।
याकी कोखि औतरै, जो सुत, करै प्रान-परिहारा।
रथ तैं उतरि, केस गहि राजा, कियौ खड्ग पटवारा।
तब वसुदेव दीन ह्वै भाष्यौ, पुरुष न तिय-बध करई।
मोकौं भई अनाहत बानी, तातैं सोच न टरई।