बाल मृगी सी आँगन ठाढ़ी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी



बाल मृगी सी आँगन ठाढ़ी। नव बिरहिनि चित चिंता बाढ़ी ।।
तुम्हरौ पंथ निहारै स्वामी। कबहि मिलहुगे अंतरजामी ।।
मंडप देखि उर थर थर करै। मनु चहुँदिसि दौ लागी जरै ।।
नित विवाह के दुंदुभि सुनि सुनि। चकित मानौ महासिह धुनि ।।
सखिनकी माल जाल जिय जानति। ब्याध रूप सिसुपालहि मानति ।।
'सूरदास' जुग भरि बीतत छिनु। हरि नवरग कुरंग पीय बिनु ।। 4176 ।।

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