बाल गुपाल खेलौ मेरे तात।
बलि-बलि जाउँ मुखारबिंद की, अमिय-बचन बोलौ तुतरात।
दुहुँ कर माट गह्यौ नँदनंदन, छिटकि बूंद-दधि परत अघात।
मानौ गज-मुक्ता मरकत पर, सोभित सुभग साँवरे गात।
जननी पै मांगत जग-जीवन, दै माखन-रोटी उठि प्रात।
लोटत सूर स्याम पुहुमो पर, चारि पदारथ जाकैं हाथ।।159।।