बालि-नंदन बली, बिकट बनचर महा, द्वार रघुबीर कौ बोर आयौ।
पौरि तैं दौरि दरवान, दससीस सौं जाइ सिर नाइ, यौं कहि सुनायौ।
सुनि स्त्रौवन, दस-बदन सदन-अभिमान, कै नैन कीसैन अंगद बुलायौ।
देखि लंकेस कपि भेष हर-हर हँस्यौ , सुनौ भट, कटक कौ पार पायौ।
बिविध आयुध धरे, सुभट सेवत खरे, छत्र की छाँह निरभय जनायौ।
देव-दानव-महाराज-रावन-सभा, कहन कौं मंत्र इहँ कपि पठायौ।
रंक रावन कहा ऽतंक तेरौ, इतौ, दोउ कर जोरि विनती उचारौं।
परम अभिराम रघुनाथ के नाम पर, बीस भुज सीस दस वारि डारौं।
झटकि हाटक मुकुट, पटकि भट भूमि सौं, झारि तरवारि तव सिर सँहारौं।
जानकीनाथ कैं हाथ तेरौ मरन, कहा मति-मंद तोहिं मध्यर मारौं।
पाक पावक करै, बारि सुरपति मरै, पौन पावन करै द्वार मेरे।
गान नारद करै, बार सुरगुरु कहै, वेद ब्रह्मा पढै़ पौरि टेरे।
जच्छ, मृतु, बासुकी नाग, मुनि गंधरब, सकल बसु जीति मैं किए चेरे।
तप बली, सत्यम तापस बली, तप बिना, बारि पर कौन पाषान तारै?
कौन ऐसौ बली सुभट जननी जन्यत, एकहीं बान तकि बालि मारैं!
परम गंभीर, रनधीर दसरथ तनय, सरन गऐं कौटि अवगुन बिसारैं।
जाइ मिलि अंध दसकंध, गहि दंत तृन, तौं भलैं मृत्यु-मुख तैं उबारैं।
कोपि करबार गहि कह्यौ लंकाधिपति, मूढ़, कहा राम कौं सीस नाऊँ।
संभु की सपथ, सुनि कुकपि कायर कृपन, स्वाकन आकास बनचर उड़ाऊँ।
होइ सनमुख भिरौं, संक नहिं मन घरौं, मारि सब कटक सागर बहाऊँ।
कोटि तैंतीस मम सेव निसिदिन करत, कहा अब राम नर सौं डराऊँ।
परैं भहराइ भभकंत रिपु धाइ सौं, करि कदन रुधिर भैरौं अघाऊँ।
सूर साजौं सबै, देहुँ डौंड़ी अबै, एक तैं एक रन करि बताऊँ॥129॥