बार बार मोहिं कहा सुनावति।
नैकहुँ नहीं टरत हिरदय तैं, बहुत भाँति समुझावति।।
दोबल कहा देति मोहिं सजनी, तू तौ बड़ी सुजान।
अपनी सी मैं बहुतै कीन्हीं, रहति न तेरी आन।।
लोचन और न देखत काहूँ, और सुनत नहिं कान।
सूर स्याम कौं बेगि मिलावहु, कहत रहत घट प्रान।।1652।।