बार बार तू जनि ह्याँ आवै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


बार बार तू जनि ह्याँ जावै।
मैं कह करौं, सुतहिं नहिं बरजति, घर तैं मोहिं बुलावै।।
मोसौं कहत तोहिं बिनु देखैं, रहत न मेरौ प्रान।
छोह लगति मौकौं सुनि बानी, महरि तुम्हारी आन।।
मुँह पावति तबहीं लौं आवति, औरै लावति मोहि।
सूर समझि जसुमति उर लाई, हँसति कहति हौं तोहिं।।723।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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