बादि बकति काहे कौ तू, कत आई मेरै घर।
वै अति चतुर कहा कहियै, जिनि तोसी मूरख लेन पठाई तनु बेधति बचननि सर।।
उत की इत, इत की उत मिलवति, समुझति नाहिंन प्रीति रीति, को तू, को है गिरिवरधर।
'सूरदास' प्रभु आनि मिलैगे, (हमहिं मनैवो) जौ चाहैगै छ्वैहै पग अपनै कर।।2594।।