बादर बहु उमड़ि घुमड़ि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मेघ मलार


बादर बहु उमड़ि घुमड़ि, बरषत व्रज आए चढि, कारे धौरे
धुमरे, धारे अति हीं जल।
चपला अति चमचमाति, ब्रज-जन सब अति डरात, टेरत सिसु
पिता-मातु, ब्रज मैं भयौ गलबल।।
गरजत धुनि प्रलय काल, गोकुल भयौ अंधजाल, चकित भए-
ग्वाल-बाल, घहरत नभ हलचल।
पूजा मेटी गुपाल, इंद्र करत यहै हाल, सूर स्याम राखौ व्रज
हरबर अब गिरिवर बल।।857।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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