बात कहत आपुस मैं बादर। इंद्र पठाए हम करि आदर।
अब देखत कछु होत निरादर। बरषि-बरषि घन भए मन कादर।।
खीझत कहत मेघ सबही सौं। बरषि कहा कीन्हौ तबहो सौं।।
महा प्रलय कौ जल कह राखत। डारि देहु ब्रज पर कह ताकत।।
क्रोध सहित फिरि वरषन लागे। ब्रजबासी आनँद अनुरागे।।
ग्वाल कहत तुम धन्य कन्हाई। बाम भुजा गिरि लियौ उठाई।।
सूर स्याम तुम सरि कोउ नाहीं। बरषत घन गिरि देखि खिस्याहीं।।940।।